कागज की एक नाव बनाई

मुखड़ा क्या देखे दर्पण में कोई पुण्य धर्म नहीं मन में,
कागज की एक नाव बनाई छोड़ गई गंगाजल में,
धर्मी धर्मी पार उतर गए, पापी डूबे जल में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में.....

कागज की एक पुतली बनाई पुतली उड़ी गगन में,
देह तुम्हारी यही रहेगी, प्राण प्रभु चरणन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में.....

पत्थर चुन चुन महल बनाया मूर्ख कहे घर मेरा,
ना घर तेरा ना घर मेरा चिड़िया रैन बसेरा,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में.....

एक डाल दो पंछी बैठे कौन गुरु कौन चेला,
गुरु की करनी गुरु ही जाने, चेला की करनी चेला,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में.....

अमवा की डाल पर कोयल बैठी कोयल बोले बन में,
पीहू पीहू करके पपीहा बोले मन की रह गई मन में,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में.....

क्या लेकर के आया जग में क्या लेकर जाएगा,
मुट्ठी बांध के आया मुसाफिर हाथ पसारे जाए,
मुखड़ा क्या देखे दर्पण में.....
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