व्रत बड़ो है एकादशी को

व्रत बड़ो है एकादशी को,
हरी के नाम बिना मुक्ति नहीं,
व्रत बड़ो है एकादशी को....

जल में नाहवे जल में धोवे, जल में कुल्ला जो करतो,
या करनी से बन्यो रे मींडको टरड टरड करतो फिरतो,
व्रत बड़ो है एकादशी को....

नदी किनारे मुंडो धोवे पर नारी चित जो धरतो,
या करनी से बन्यो रे गधेड़ो बोझा ढोतो वो फिरतो,
व्रत बड़ो है एकादशी को....

उठ सवेरे चुगली करती सात घरा में जो फिरती,
या करनी से बनी रे कुकरी घर घर टुकड़ा वा खाती,
व्रत बड़ो है एकादशी को....

छुप छुप जो बाता सुनती ऐसी नर को कई करसी,
या करनी से बन्यो रे छिपकली भीत दीवार पर वा चिपकी,
व्रत बड़ो है एकादशी को....

कोड़ी कोड़ी माया जोड़ी जोड़ जमीन में जो धरतो,    
या करनी से बन्यो रे सपोला पेट रगड़ के वो चलतो,  
व्रत बड़ो है एकादशी को....

ग्यारस के दिन माथो धोतो बाल सवारती जो फिरती,  
या करनी से बनी  रे भूतनी बड़ पीपल में वा रहती,
व्रत बड़ो है एकादशी को....

कहत कबीर सुनो भाई साधो जाकी करणी वो भरतो,
चौकी करनी कर महारा मनवा फेर जनम तू कब पावे,
व्रत बड़ो है एकादशी को....  
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