भंग धतुरा रगड़ रगड़ के

भोले शंकर तेरे दर्शन को,
लाखो कावड़िया आये रे,
भंग धतुरा रगड़ रगड़ के,
गंगा नीर चढ़ा हे रे,

एसी मस्ती छाए रही इस सावन के महीने में,
के देदे यो पल में भोला कमी नही है खजाने में,
धार लंगोटी हाथ में डमरू नन्द ऐश्वर कहलाये रे,
भंग धतुरा रगड़ रगड़ के...

अंग भभूती मुंड माल गल नाग शेष लिपटाया है रे,
तपती गर्मी धुना रमता आगे आसान लाया रे,
सुध भूध नही रही भोले ने इत ओ डमरू भजाये रे,
भंग धतुरा रगड़ रगड़ के....

जटा गंगा और रजत चंदर माँ सोहे शीश पे धारे रे,
ॐ नाम के नाग से तूने धरती अम्बर तारे रे,
कीड़ी ने कण हाथी ने मन भोला सबन पुगाये रे,
भंग धतुरा रगड़ रगड़ के गंगा नीर चढ़ा हे रे....

भस्मा सुर ने करी तपस्या वर दिया मुह माँगा,
जैसी करनी वैसी भरनी के अनुसार पाया रे,
शिव धुनें पर सजन सिरसा वाला शीश निभाए रे,
भंग धतुरा रगड़ रगड़ के गंगा नीर चढ़ा हे रे........
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