ऐलान करता हु शरेआम करता हु

ऐलान करता हु शरेआम करता हु,
मैं तो मेरे ही श्याम का गुणगान करुगा,
बस श्याम जपुगा ,
ऐलान करता हु शरेआम करता हु

गुजरे दिनों की याद मुझे जब आती है,
इन आखियो की पलके भीगी जाती है,
कैसे सम्बाला श्याम ने मैं ना भूलू गा बस श्याम जपुगा,
ऐलान करता हु शरेआम करता हु,

जब से मुझको श्याम ने अपनाया है,
मेरी हार को मेरी जीत बनाया है,
अब जीवन की हर बाजी तो मैं जीतू गा बस श्याम जपुगा,
ऐलान करता हु शरेआम करता हु

समज ना पाया इनसे कैसा नाता है,
पल में बदली दुनिया ऐसा दाता है,
इनकी किरपा छाओ तले मैं रहुगा,बस श्याम जपुगा,
ऐलान करता हु शरेआम करता हु

निर्मल ने जबसे ये जोट जगाई है,
इज्जत की दौलत भी खूब कमाई है,
मैं तो डंके की चोट पे ये बात कहु गा बस श्याम जपुगा,
ऐलान करता हु शरेआम करता हु
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