सच्चे हिरदये से हो कर समप्रित

सच्चे हिरदये से हो कर समप्रित अपने ठाकुर को जो पूजता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को,
संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो कर समप्रित

जिनकी नैया संभाले कन्हैया उसको कोई भी दर न भवर का,
एक उसकी ही मंजिल सही है तो पतिक है प्रभु की डगर का,
गम की अंधी उसे क्या डराए जो प्रभु मौज में झूमता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो कर समप्रित

जिसका रिश्ता है माया पति से जग की माया उसे क्या लुभाये,
उसकी नजरो में सब है बराबर कोई अपने न कोई पराये,
जिनके  दिल में वसा श्याम सूंदर हर कही श्याम को देखता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो कर समप्रित

प्रेम की डोर में बंध के भगवन भक्त के द्वार चल के आये,
रंग लाती है चाहत तभी तो आके गागर में सागर समाये,
बोल तेरी रजा क्या है प्यारे जीब से ब्रम्ह यु पूछता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को....

एक दिन छोड़ के जग ये जाना,
बिनु बन जा प्रभु का दीवाना,
श्याम को जिसने अपना है माना,
उसको चरणों में मिलता ठिकाना,
जान के बाद ने ये ज़माना उनके चरणों की रज ढूंढ़ता है,
ढूंढ़ता जो सदा सँवारे को संवारा भी उसे ढूंढ़ता है,
सच्चे हिरदये से हो कर समप्रित

श्रेणी
download bhajan lyrics (748 downloads)