प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार

कौन पावे याको पार, प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार.....

देखो मैं सुनाऊं एक बात अनमेल,
ब्रह्म निराकार रह्यो गोकुल में खेल,
नंद यशोदा के द्वार,
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार.....

जननी की गति दई पूतना कुँ दे,
विष देने आई पाई मुक्ति खेलम खेल,
खुले स्वर्ग के किवाड़,
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार.....

तीन पैर भूमि याने बली लियो छली,
चौखट न लांघी जाए रह्यो सो मचल,
याने खम्भ दियो फाड़,
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार.....

गोपी बन्यो शिव जाने काम कियो ढेर,
ठुम ठुम नाचे हंसे गोरा मुंह फिर,
नंदी बैल को सवार,
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार.....

प्रेम को प्रमुख यही वृंदावन धाम,
प्रेम हित पायो श्याम रसिया को नाम,
याहे जाने कहां गंवार,
प्रेम नदिया की सदा उल्टी बहे धार.....

श्री देवशरण जी
श्री धाम गोवर्धन
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