बस चार दिनों का मेला

बस चार दिनों का मेला,
फिर चला चली खेला,
नही कायम जग में डेरा,
प्यारे ना तेरा ना मेरा।।

नो महलों की बाते छोड़ो,
धेला साथ ना जाएगा।
मुठ्ठी बांध के आया जग में,
हाथ पसारे जाएगा,
मोती माणिक हेरा,
ना सोने का ढेरा,
नही कायम जग में डेरा,
प्यारे ना तेरा ना मेरा।।

ये काया ना साथ चलेगी,
जिसपे तू इतराया,
रूप रंग है एक छलाबा,
सारी झूठी माया है,
तुझे मद माया ने घेरा,
ना राम की माला फेरा,
नही कायम जग में डेरा,
प्यारे ना तेरा ना मेरा।।

ना सत्संग ना राम भजन,
ना तीरथ ना धाम किया,
ना भूखे को रोटी ही दी,
ना कुछ उसका मान किया,
‘राजेन्द्र’ हरि का चेरा,
मैं हरि का हरि मेरा,
नही कायम जग में डेरा,
प्यारे ना तेरा ना मेरा।।
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