इस मन की भटकी हुए नाव को

इस मन की भटकी हुए नाव को, आज किनारा मिल गया,
राम मेरे मुझ पापी को भी तेरा सहारा मिल गया,
इस मन की भटकी हुए नाव को, आज किनारा मिल गया॥

उलझा हुआ था मैं माया के जंगल में तुमने बचाया मुझे
तुमने बचाया मुझे, तुमने बचाया मुझे,
औकात ना थी मेरी नाथ तुमने,
अपना बनाया मुझे, अपना बनाया मुझे,
तेरी कृपा से गंगा के जल में पानी ये खारा मिल गया,
इस मन की भटकी हुए नाव को, आज किनारा मिल गया॥

केहनो को तो चल रही थी ये साँसे बेजान थी आत्मा,
जन्मो की श्रापो का हाँ मेरे पापो का तुमने किया खत्मा,
तुमने छुआ तो तुम्हारा हुआ तो, जीवन दुबारा मिल गया,
इस मन की भटकी हुए नाव को, आज किनारा मिल गया॥

ना जाने कितने जनम और जलता मैं, तृष्णा की इस आग में,
काले सवेरे थे लिखे अँधेरे थे, शायद मेरे भाग में,
तुम आये ऐसे अंधेरों में जैसे, कोई सितारा मिल गया,  
इस मन की भटकी हुए नाव को, आज किनारा मिल गया,
राम मेरे मुझ पापी को भी तेरा सहारा मिल गया,
इस मन की भटकी हुए नाव को, आज किनारा मिल गया॥
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