आजा आजा केवट भैया हमें जाना गंगा पार है

आजा आजा केवट भईया हमें जाना गंगा पार है
मातपिता ने वन को भेजा वचन निभाना आज है

केवट हाथ जोड़ के थाडा करें बारम्बार प्रणाम है
मेरी तो लकड़ी की नाव तेरे जादू से भरे पांव है

पत्थर की जो शिला देखी उस पर चरन छुवाया है
चरन धुली से उस शिला को तुमने नारी बनाया है

चरण धुली तुम मुझको दे दो इस छोटे से काठ में
फिर मै तुमको बैठा लूंगा अपनी छोटी सी नाव में

चाहे मुझे प्रभु तार दे चाहे लक्ष्मण मुझे मार दे
जब तक चरण धुली न लेलू नहीं करूंगा पार मैं

प्रभु आज्ञा से चरण धुली ली एक बड़े से पात्र में
पितरों को सब पार करो अब बांट दी सारे गांव में

अभी न लूंगा मै उतराई बाद में तुम्हें चुकाना है
आज किया है मैने पार बाद में तुमको करना है

केवट जैसा हुआ न होगा इस सारे जहान में
प्रभु के चरणों को जिसने खुद रखा अपने हाथ में

रचियता ~~नीलम अग्रवाल

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