बाला सुंदरी महिमा चालीसा

जय जय देवी त्रिपुरा त्रिशक्ति जगदंब,
जय जय जय त्रिपुरेश्वरी शिवशक्ति नवरंग,

जय जय बाला सुन्दरी माता।कृपा तुम्हारी मंगल दाता। ।
जय जननी जय जय अविकारी। ब्रह्मा हरिहर त्रिपुर धारी।।
सौम्य रूप धरे बाल सुहाना।पूजते निशदिन सब द्रव नाना।।
हिमाचल गिरि तेरा मंदिर।धाम सुहाना श्री त्रिलोकपुर।।
रामदास की विपदा काटी।देववृंद की अद्भुत माटी।।
नमक क्रय करने जो जाता।सहारनपुर से जोडा नाता।।
धर्म- कर्म रामदास जी कीन्हा। देववृंद मे आश्रय लीना।।
जब भी सहारनपुर वो जाते। शाकम्भरी के दर्शन पाते।।
देवीबन से पिंडी बन आई। धन्य श्री त्रिलोकपुर माई।।
रामदास को देकर स्वप्न।प्रफुल्लित किया उसका तन- मन।।
भवन बना मैय्या जी बोली।रामदास ने विपदा खोली।।
निर्धन मै क्या भवन बनाऊँ। नाहन राजा को बतलाऊं।।
नाहन का राजा बडभागी। भवन बनावें बन अनुरागी।।
त्रिदेवी का स्थान विराजे। बाला सुंदरी मध्य मे साजे।।
पूर्व पर्वत ललिता भवानी। उत्तर मे सोहत त्रि भवानी।।
बाल रूप तेरा बड़ा अनोखा।जगदंबा जगदीश विशोका।।
नैना देवी रूप तेरा है। नैनन का महातेज धरा है।।
तू ही ज्वाला चिंतपूर्णी। मनसा चामुण्डा माँ करणी।।
रूप शताक्षी तूने धारा।अन्न - शाक से सब जग तारा।।
नगरकोट की तू माँ भवानी, कालिका मुंबा हिंगोल भवानी।।
रूप तेरे की अनुपम शोभा, निरखि निरखि त्व सब जग लोभा।।
चतुर्भुजी त्व श्वेत वर्ण है, गगन शीश पाताल चरण है।।
पार्वती ने खेल रचाया, दसविद्या का रूप बनाया।।
श्रीविद्या जो मात कहाती, वो देवी षोडसी कहलाती।।
मात ललिता इनको कहते, त्रिपुरा सुंदरी भजते रहते।।
ये देवी है बाला सुंदरी, दस विद्या मे होती गिनती।।
कामाख्या का रूप तेरा, षडानन स्वरूप धरा है।।
भवन तेरे राजे नगर नगर है, सुंदर सोहे सर्व सगर है।।
हथीरा मे वास किया, मुलाना स्वरूप धरा है।।
पिहोवा जो सरस्वती संगम, बाल रूप धरती उस आंगन।।
सुंदर रुप कठुआ मे साजे, दर्शन कर सब विपदा भागे।।
देवबंद की तू महामाया। चतुर्दशी को रूप दिखाया।।
रणजीत देव डेरा के राजा। करत सदा परहित है काजा।।
नंगे पांव त्रिलोकपुर आये। पिंडी रूप तेरा वो लाये।।
लाडवा मे भवन बनाया। चैत्र चतुर्दशी मंगल छाया।।
धन्य- धन्य हे मात भवानी। वंदन तेरो आठो यामी।।
जालंधर पीठ मे शोभित। भवन तेरा माँ बना है अक्षत।।
जो जन गावे मात चालीसा। पूर्ण काम करे जगदीशा।।
नील सागडी गुण तेरे गावें। सबके संकट सगर मिट जावे।।
तम गहन मां दूर तू करदे। भक्त तेरे की झोली भरदे।।

    जयति- जयति जगदंबा, जयति सौम्य स्वरूप।
     जग की एक आधार तू सुमरे सुर- जन भूप।।







 

download bhajan lyrics (643 downloads)