साई तेरी नजर से कही मैं उतर न जाऊ

साई तेरी नजर से कही मैं उतर न जाऊ,
कोई भूल न हो ऐसी तुजसे बिशड न जाऊ,
साई तेरी नजर से कही मैं उतर न जाऊ,

जो राह तू दिखाये उस राह पे चालू मैं,
वो छाव का सफर हो या धुप में जलु मैं,
जिस और तू न भेजे मैं कभी उधर न जाऊ,
साई तेरी नजर से कही मैं उतर न जाऊ,

जिस हाल में भी रखना कभी आह न करेंगे,
वादा किया है तुमसे साई के गुन्हा न करेंगे,
साई अपने वादे से कही मैं मुकर न जाऊ,
साई तेरी नजर से कही मैं उतर न जाऊ,

तेरी रेहमतो के सदके मुझसे निभा रहा है,
बिखरे हुए है हम को तू समेटे जा रहा है,
फिर खा के कोई ठोकर मैं कही बिखर न जाऊ,
साई तेरी नजर से कही मैं उतर न जाऊ,
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