जेल के खुल गये द्वार

जेल के खुल गये द्वार, जन्म लियो कान्हा ने,
सो गये पहरेदार, जन्म लियो कान्हा ने,

देवकी और वसुदेव के मन में, फूल खिले और मुरझाये,
ले जाओ इसे नंदगांव में, कंस कहीं न आ जाये,
करे देवकी देखो  गुहार, जन्म लियो कान्हा ने,

वासुदेव ले कर कान्हा को, जेल से जब बाहर आये,
बिजलियाँ कड़क रही थीं नभ पे, काले थे बादल छाये,
हुआ गहरा था देखो अंधकार, जन्म लियो कान्हा ने,

वासुदेव धर टोकरी सर पे, उतर गये यमुना जल में,
मचल उठीं यमुना की लहरें, लगीं उछलने पल पल में,
देखो देखो रहीं पाँव पखार, जन्म लियो कान्हा ने,

उमड़ उमड़ घनघोर घटायें, लगीं बरसने मुस्का कर,
शेषनाग ने ढाँप लिया तब, कान्हा को फन फैला कर,
रहे कान्हा की छवि को निहार, जन्म लियो कान्हा ने,

नंदगांव में ढोल बजे और, गूंज रही शहनाईयां हैं,
नन्द बाबा और तशोदा माँ को, देवें सभी बधाईयां हैं,
देखो हो रहे मंगलाचार, जन्म लियो कान्हा ने,

नंदगाँव में पहुँच यशोदा, की कन्या को ले आये,
छोड़ दिया कान्हा को वहीं और, वापिस कारागार आये,
करने भक्तों का "दास" बेड पार, जन्म लियो कान्हा ने,

रचना अशोक शर्मा "दास"
स्वर कुमार विशु
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