श्याम नजरो में है

श्याम नजरों में है तो सफ़र क्या करूं,
श्याम हैं साथ तो मैं फिकर क्या करूं......

( भवसागर भी पार वो कर ले कृष्ण ने जिसको थामा हो,
उसकी नईया क्या डूबेगी पतवार ही जिसके कान्हा हो॥ )

नाम रुतबा नहीं ना महल चाहिए,
तू जो मिल जाए तो कुछ नहीं चाहिए,
इस जमीं से गगन तक मैं देखू जिधर,
तेरी सूरत मुझे हर कहीं चाहिए,
हाथ तेरा न हो तो मैं सर क्या करूं,
श्याम है साथ तो मैं फिकर क्या करूं.......

कान्हा को सूरत ना देखूं जब मैं सुबह,
हर पल लगता है जैसे कुछ बाकी है,
दुनिया वाले चाहे जो कुछ भी दे दें,
मुरली वाले का बस साथ ही काफ़ी है.....

मैं ही मीरा बनूं मैं ही राधा बनूं,
खुद का मैं कम मगर तेरा ज्यादा बनूं,
महिमा तेरी जो निस दिन सुनाता रहे,
कुछ न बन पाऊं तो मैं वो गाथा बनूं,
जब हृदय में है तू तो मैं घर क्या करूं,
श्याम हैं साथ तो मैं फिकर क्या करूं.....
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