कभी तो तस्वीर से निकलोगी

मैया तेरी तस्वीर सिरहाने रखकर सोते हैं,
यही सोच हम अपने दोनों नैन भिगोते हैं,
कभी तो तस्वीर से निकलोगी, कभी तो मेरी मईया पिघलोगी....

जाने कब आ जाओगी , मैं आँगन रोज बुहारता ,
मेरे इस छोटे से घर का कोना कोना सँवारता,
मेरी माँ जगदम्बे, माँ शेरावाली,
जिस दिन माँ नहीं आती हम जी भर कर रोते हैं,
यही सोच हम अपने दोनों नैन भिगोते हैं,
कभी तो तस्वीर से निकलोगी, कभी तो मेरी मईया पिघलोगी….

अपनापन हो अँखियों में, होठों पे मुस्कान हो,
ऐसे मिलना जैसे की माँ, जन्मों की पहचान हो,
मेरी माँ जगदम्बे, माँ शेरावाली,
आपके खातिर अँखियाँ मसल मसल कर रोते हैं,
यही सोच हम अपने दोनों नैन भिगोते हैं,
कभी तो तस्वीर से निकलोगी, कभी तो मेरी मईया पिघलोगी....

इक दिन ऐसी नींद खुले, जब माँ का दीदार हो,
बनवारी फिर हो जाए, ये अँखियाँ बेकार हो,
मेरी माँ जगदम्बे, माँ शेरावाली,
बस इस दिन के खातिर हम तो दिन भर रोते हैं,
यही सोच हम अपने दोनों नैन भिगोते हैं,
कभी तो तस्वीर से निकलोगी, कभी तो मेरी मईया पिघलोगी…..
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