डमरू बाजे भोलेनाथ का

शिव तीनो लोक के स्वामी है,
शिव कैलाशो के वासी है,
सारे जग पर इनकी नजर रे,
भोले तो अंतर्यामी है,
है मन जिनके शिव बसते उनको डर की बात का,
जब डमरू बाजे भोलेनाथ का,
सारा धरती गगन ये नचता,
जब आँख तिसरी खोल दे तो काल भी थर थर कापता.....

भोले की मस्ती में हो के मगन,
नच रहा ये धरती गगन,
दुनिया की उसे हा परवाह नहीं,
मन मैं आधार है जिनके शिवम्,
शिव ही अँधेरा है शिव ही किरण,
वोही है अग्नि वोही पवन,
जीवन भी वो ही है चींटी भी वो ही है,
शिव मैं बसा है हर इक कान,
हाथो माई डमरू….. गले में नाग,
जट्टा माई गंगा…. आंखो माई आग,
मोह माया चोर के सारे जगत की,
बैठा है भोला कहीं सब कुछ त्याग के…..

जब तड़व करते भोले है,
आकाश पाताल भी डोले है,
सदियो जनमो से गुंज रहा एक नाम जो बम बम भोले है,
खुद पी कर विश का प्यारा वो अमृत देवो मैं बट्टा,
जब डमरू बाजे भोलेनाथ का,
सारा धरती गगन ये नचता,
जब आँख तिसरी खोल दे तो काल भी थर थर कापता......
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