ओ मीरा के गोपाल

ओ मीरा के गोपाल,
कर दियो तूने अजब कमाल।

दोहा – मोर मुकुट पीताम्बर शोभित,

कुंडल झलकत कान,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
दे दर्शन को दान।
जो मैं ऐसा जानती,
कि प्रीत करे दुख होय,
नगर ढिंढोरा पीटती,
कि प्रीत ना करियो कोय।
ओ मीरा के गोपाल,
कर दियो तूने अजब कमाल,
गुण तेरे मैं गाउँ,
तेरी महिमा अजब विशाल,
भूल ना मैं पाऊं।।

मेरे मोहन गिरधारी,
गोविंदा गोपाला,
भक्तों के संकट को,
पल भर में हर डाला,
जग में है ऊंची शान,
कैसे मैं करूँ बखान,
भूल ना मैं पाऊँ,
तेरी महिमा अजब विशाल,
भूल ना मैं पाऊं।।

वो महलों की रानी,
बनी प्रीत में दीवानी,
समझाया बहुत सबने,
पर एक नहीं मानी,
हरि नाम की माला डाल,
हो गई जग से कंगाल,
भूल ना मैं पाऊँ,
तेरी महिमा अजब विशाल,
भूल ना मैं पाऊं।।

विष प्याला भरकर के,
जब राणाजी भिजवाये,
समझ के मीरा चरणामृत,
घट अपने उतराये,
विष बन गया अमृत ढाल,
बने रक्षक खुद गोपाल
भूल ना मैं पाऊँ,
तेरी महिमा अजब विशाल,
भूल ना मैं पाऊं।।

बैरी राणा ने फिर से,
इक चाल कुटिल चलवाई,
भर के बिछू की टोकरियाँ,
मीरा को दीये भिजवाई,
जब गोविंद नाम आधार,
बन गया सुंदर नॉलखहार
भूल ना मैं पाऊँ,
तेरी महिमा अजब विशाल,
भूल ना मैं पाऊं।।

ओ मीरा के गोपाल,
कर दियो तूने अजब कमाल,
गुण तेरे मैं गाउँ,
तेरी महिमा अजब विशाल,
भूल ना मैं पाऊं।।
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