राम भजो डर काहे को

( सतगुरु मेरा बणिया, और में संतन की देह,
रोम रोम में बस गया, ज्यू बादल बिच मेघ। )

भजो जाको विश्वास राखजो ,
सायब भिड़ी थांको।
संता राम भजो डर काको।

श्रीयादे सिमरण ने बैठी ,
नेचो राखो धणिया को।
बलति अग्निमु बचिया उबारिया,
आव पाक ग्यो आको।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

भक्त प्रहलाद ने पर्चो पायो ,
पायो साथ सतिया को।
ताता खम्ब से बाथ भराई ,
मेट्यो नाम पिता को।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

दस माथा ज्याके बीस भुजा है,
रावण बण गयो बांको।
एक एक ने काट भगाया ,
पतो न राख्यो वाको।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

गज ग्राहक लड़े जल भीतर ,
लड़त लड़त गज थाको।
गज की कूच सुनी दरगाह में,
गरुड़ छोड़कर भागो।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

कौरव पांडवा के भारत रचियो ,
होयो मरबा को हाको।
पांडवा के भिड़ु कृष्ण चढ़ आया,
बाल न हुयो बांको।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

भारत मे भॅवरी का अंडा,
बले काळजो मां को।
गज का घंटा टूट पड़ा है ,
बांण मोखला फांको।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

कोरवा का भेज्या पांडव रे आया,
कोने दोष गुरां को।
तीन बात की करी थरपना ,
पेड़ लगायो आम्बा को।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….

के लख कहु के लख वर्णों ,
सारियो काज गणा को।
सूरदास की आई विनती ,
सत्य वचन मुख भाको।
संता राम भजो डर काको।
भजो जाको ….
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