क्यों चिंता करता बेकार

क्यों चिंता करता बेकार, द्वारे पे तेरे खडो है दातार,
देगो चुगेरो है, जाने चोंच दई।।

धन धान मान दियो है और सुंदर दई देह नर की,
जाने गेह नेह दियो है, वो ही चिंता करेगो या घर की,
काहे करे दुनिया में, तू झूंठो बखेड़ो है, जाने चोंच दई।।

नौ मास के गर्भ में जिंदा कैसे रहो कहाँ से खायो,
जब दांत नही थे तेरे मुख में, दूध अमृत सो तोकूं पिलायो,
सब जग को रखवारो, तेरो सहारा है, जाने चोंच दई।।

कहा सोच को बनेगो, काहे चिंता में तन को जलाने,
वाके आगे ना तेरी चलेगी, वो तो सारे जगत कूं नचाते,
पूरण को पूरण है, ना कछू तेरो है, जाने चोंच दई।।
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