ओ माँ तू तो जाने व्यथा मन की

ओ माँ तू तो जाने व्यथा मन की,
अँखियाँ जो छुप छुप रोई तुझसे छुपी ना कोई,
हरी तूने हर पीड़ा दुखियन की॥
ओ माँ...

पर्वत त्रिकूट पे चढ़के कन्या का रूप धरके, तुमने बसाया वैष्णोधाम.....-2
सुनली तूने सदा श्रीधर की देके उसे  सहारा,
करवाके फिर भंडारा, भरी झोली तूने एक निर्धन की ।
ओ मां...

भैरव ने तुझसे माँगा मांस मदिरा प्याला, अहंकार तूने ही तोड़ा....-2
भैरो घाटी गिरा सर कट के मांगी क्षमा जो उसने,
करके दया फिर तुमने लाज रखली उसके असुवन की,
ओ माँ तू तो जाने व्यथा मन की,
अँखियाँ जो छुप छुप रोई तुझसे छुपी ना कोई,
हरी तूने हर पीड़ा दुखियन की॥
ओ माँ...
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