लुट रहा रे मैया का खजाना

लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रे,
मैया का खजाना लुट रहा रे,
मैया का ख़जाना लुट रहा रे,
शेरावाली का खजाना लुट रहा रे,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रे,
मैया का खजाना लुट रहा रे।।

लूट सके तो लूटले बन्दे,
काहे देरी करता है,
ऐसा मौका फिर ना मिलेगा,
क्यों नहीं झोली भरता है,
माँ की शरण में आ करके के,
जो कुछ भी माँगा, मिल गया रे,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रे,
मैया का खजाना लुट रहा रे।

हाथों हाथ मिलेगा परचा,
ये दरबार निराला है,
घर घर पूजा हो कलयुग में,  
भक्तों का बोलबाला है,
जिसने भी माँ का नाम लिया,
किस्मत का ताला खुल गया रै,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रे,
मैया का खजाना लुट रहा रै।

मैया जैसा इस दुनिया में,
कोई भी दरबार नहीं,
ऐसी दयालू बनवारी को,
करती कभी इंकार नहीं,
कौन है ऐसा दुनिया में,
जिसको ये मैया लूट गई रे,
लुट रहा, लुट रहा, लुट रहा रे,
मैया का खजाना लुट रहा रे........
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