क्या खूब सजते हो जब कीर्तन होता है,

क्या खूब सजते हो जब कीर्तन होता है,
बंरे से लगते हो जब कीर्तन होता है,
बाराती बन करके नाचे सारा जहान,
जो मस्ती दरबार में मिलती मिलती और कहा,
क्या खूब सजते हो............

कभी पज्रंगी पगड़ी है,कभी सोहने चांदी हीरे की तगड़ी है
लाल गुलाल जूही चम्पा,वेला का सिंगार देख देख के खुश होता है सांवरिया सरकार,
क्या खूब सजते हो............

बंधा है ये घुमेरा कभी लिले चर अता है बांध के सेहरा,
कोई कमी रखता नही सजने में मेरा श्याम भगतो की मुस्कान में मिलता बाबा को आराम,
क्या खूब सजते हो............

तारीफ करू क्या तेरी तेरे चेहरे से ना हटती नजरे मेरी,
आज ख़ुशी से श्याम की तेरे आंखे भर आई,
जब तक साँस चले मेरी दर से हो न विदाई,
क्या खूब सजते हो............
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