इक ठौर चाहिये

थक गया हूँ चलते चलते
इक ठौर चाहिये।
तेरे चरणों के सिवाय
ठिकाना ना और चाहिये।

भटक रहा है मन
डगर है बहुत अँधेरी
राह दिखाये ऐसी
इक भोर चाहिये।
तेरे चरणों के सिवाय
ठिकाना ना और चाहिये।
थक गया हूँ चलते चलते
इक ठौर चाहिये।

डगमगा रही है कश्ती
भँवर बहुत हैं गहरे
डूब रहा हूँ तुम्हारे होते
तुम कैसे मांझी ठहरे
थामों पतवार आके
मुझे छोर चाहिये।
तेरे चरणों के सिवाय
ठिकाना ना और चाहिये।
थक गया हूँ चलते चलते
इक ठौर चाहिये।
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