करके दर्शन परशन हुई

रास रचिया सावरे , मनमोहन गोपाल ,
लाज भक्त की राखते , माधव दीन दयाल,

करके दर्शन परशन हुई , हुआ हृदय में उजियाला
पत्थर के माह दिया दिखाई , मने मोहन मुरली वाला
हे री मन मोहन मुरली वाला………..

लोक लाज कुल की मर्यादा , तोड़ बगादी सर की
कुटुम्ब काबिल त्याग दिया , में तो बनी भक्तणी हर की
सेवा करके गिरधर की में……..
रोज पहरा दूँ माला
पत्थर के माह दिया दिखाई , मने मोहन मुरली वाला
हे री मन मोहन मुरली वाला………..

सोणी सूरत उमर है बाली , नाह धो तिलक लगावे
सब भक्ता के मिलके संग में , गुण गोविंद के गावे
मीरा को तो कुछ नही भावे……...
मन बस गया रूप निराला
पत्थर के माह दिया दिखाई , मने मोहन मुरली वाला
हे री मन मोहन मुरली वाला………..

घुघट परदा चुनरी भी मने , साड़ी खोल बगादी
भय की भूतनी दूर करी मनै , अड़े समाधि ला दी
फिर मोहन की जोत जगादी……….
में पी गई विष का प्याला
पत्थर के माह दिया दिखाई , मने मोहन मुरली वाला
हे री मन मोहन मुरली वाला………..

क्यू राणा की करे बड़ाई ,माँ कित तेरी अकल गई से
भर के वचन पलट जाना माँ , मानस का धर्म नही से
मीरा का तो पति सही से………….
बचपन का देखा भाला
पत्थर के माह दिया दिखाई , मने मोहन मुरली वाला
हे री मन मोहन मुरली वाला………..

उस दिन ने माँ भूल गई तू , सजी बारात फिरे थी
में भुझु मेरा पति कौन , गिरधर पे हाथ धरे थी
मीरा के ना बात जरह थी………..
कहे लखमी जाटी वाला
पत्थर के माह दिया दिखाई , मने मोहन मुरली वाला
हे री मन मोहन मुरली वाला………..
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