ना लेकर कुछ आया रे बन्दे ना लेकर कुछ जायेगा

ना लेकर कुछ आया रे बंदे ना लेकर कुछ जायेगा

ना लेकर कुछ आया रे बंदे ना लेकर कुछ जायेगा,
भज गोविन्दम मूढ़मते हरि भक्ति काम ही आयेगा,
ना लेकर...........

झूठी शान और कंचन काया अपनी जिसपे नाज़ किया,
डोर साँस की जैसे टूटी तू मिट्टी कहलायेगा,
ना लेकर ..........

धन संपदा महल अटारी मर जर के जो खड़ा किया,
कुछ भी साथ न जाने वाला हाथ पसारे जायेगा,
ना लेकर........

रिश्ते बंधन सब झूठे हैं इस माया की नगरी में,
जिसको तू अपना समझा था इक दिन वहीं जलायेगा,
ना  लेकर.............

इस धरा का इस धरा पे सब धरा रह जायेगा,
भज ले मुरख हरि को अब तो हरि की भक्ति पायेगा,
ना  लेकर..........

हरि नाम कलिकाल कलप तरु,
झोली भर हरि सुमिरन से,
चार लाखि चौरासी भव,
हरि सुमिरन पार करायेगा,
ना  लेकर............

रचना आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी
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