अवधू भजन भेद है न्यारा

अलख लखा लालच लगा कहत न आवै बैन,
निज मन धसा सरूप में सदगुरू दीन्ही सैन
उनमुन लगी आकाश में निसदिन रहे गलताल,
तन मन की कुछ सुध नहीं जब पाया निर्बाण

अवधू भजन भेद है न्यारा,
कोई कोई जानेगा जाणन हारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा

क्या गाये क्या लिखी बतलाये क्या भरमें संसारा,
क्या संध्या तर्पण के कीन्हें जो नहि तत्व विचारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा,
कोई कोई जानेगा जाणन हारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा

मूंड मुंडाये सिर जटा रे रखाये, क्या तन लाये छारा,
क्या पूजा पाहन के कीन्हें, क्या फल किये अहारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा,
कोई कोई जानेगा जाणन हारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा

बिन परिचै साहिब हो बैठे विषय करै व्यवहारा,
ग्यान ध्यान का मरम न जाने, बात करे अहंकारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा,
कोई कोई जानेगा जाणन हारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा

अगम अथाह महा अति गहरा, बीजन खेत निवारा,
वह तो ध्यान मगन होय बैठे, काट करम की छारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा,
कोई कोई जानेगा जाणन हारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा

जिनके सदा अहार अंत में, केवल तत्व विचारा,
कहै कबीर सुणो भई गोरख, तारौ सहित परिवारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा,
कोई कोई जानेगा जाणन हारा,
अवधू भजन भेद है न्यारा
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