८० घज का दामन पेहर मटक चालू गी

सारे गाओ में हो गया हल्ला श्याम ने पकड़ा मेरा पल्ला
अपनी ऊंगली में पेहना है मैंने उसकी प्रीत का छल्ला
छल्ले की मैं दिखा के मैं तो झलक चालु गी
८० घज का दामन पेहर मटक चालू गी

मैं हु बरसाने की राधा श्याम से मिलने का है वादा,
बाते गुप चुप गुप चुप हो गई सब को न बतलाऊ ज्यादा
मिलने को श्याम से मैं वक़्त चालु गी
८० घज का दामन पेहर मटक चालू गी

जुल्मी बैठा है पनघट पे सारे लोगो से वो छुप के,
मिलने मैं भी अब कान्हा से जाऊगी छुपके छुपके,
मैं तो सिर पे मटकियाँ को धर के चालु गी
८० घज का दामन पेहर मटक चालू गी

मैं हु उसकी वो है मेरा जन्म जन्म का अपना फेरा
रोके नही रुकू गी आज शर्मा कितना लगा ले पेहला,
दुनिया की रस्मो को मैं तो पटक चालु गी
८० घज का दामन पेहर मटक चालू गी
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