कुछ कहूं है कहाँ ये मज़ाल मेरी

कुछ कहूं है कहाँ ये मज़ाल मेरी,
महिमा है सतगुरु बेमिसाल तेरी,
कुछ कहूँ है कहा ये मज़ाल मेरी......

हर तरफ हर जगह सतगुरु रुतबा तेरा,
हर डगर हर नज़र में है जलवा तेरा,
महिमा गाऊं मैं क्या दीनदयाल तेरी,
कुछ कहूँ है कहाँ ये मज़ाल मेरी...

तुमने करके क़रम मुझको तन ये दिया
उसपे करके दया मुझको शरण ले लिया,
हो गई जिन्दगी ये निहाल मेरी,
कुछ कहूँ है कहाँ ये मज़ाल मेरी......

रंग दो मेरी चुनरी अपने रंग में प्रभू,
आ के बस जाओ मेरे मन में प्रभू,
करदो शिव की चुनर लालों लाल प्रभू।
कुछ कहूँ है कहाँ ये मज़ाल मेरी.....
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