हर शेह में साईं ही साईं

हर शेह में साईं ही साईं
हर चेहरा चेहरा तेरा
जिस को भी देखो लगता है मुझको अपना मेरा
हर शेह में साईं ही साईं

किसको समजू मैं अपना किसको बेगाना मानु मैं
हर दिल में जब तू ही समाया क्या समजू क्या जानू मैं
वैर किसी से करना चाहू तो भी कर न पाउ मैं
सब तेरी माया है साईं मन ही मन दोहराऊ मैं
तू ही कारण तू ही करता
हर झूठा सचा तेरा
जिस को भी देखो लगता है मुझको अपना मेरा
हर शेह में साईं ही साईं

हर दम जब तू साथ है तो कुआ महफ़िल क्या वीराना
सुख में इतराना कैसा फिर दुःख में कैसा गबराना
कर्मो के बंधन में बंधा मैं हर दम तुझको याद करू
तेरे ही सिमरन में डूबा पल पल ये फरयाद करू
नित मस्तक हो कर मैं कबूलु जो भी हो बक्शा तेरा
जिस को भी देखो लगता है मुझको अपना मेरा
हर शेह में साईं ही साईं

मैं अधना सा इक बन्दा क्या रुतबा क्या हस्ती मेरी
मैं क्या समजू भेद तेरे मैया क्या समजू बाते तेरी
पाप पुण्ये में अंतर क्या है दुनिया क्या है जन्नत क्या
तुझको ही अपना समजा बस और न कुछ भी समज सका
मैं साहिल नादान बहुत हु पड़ना सका लिखा तेरा
जिस को भी देखो लगता है मुझको अपना मेरा
हर शेह में साईं ही साईं
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