कान्हा सब तम अब हर लीजो

कान्हा सब तम अब हर लीजो

कान्हा सब तम अब हर लीजो,
चहुँ दिसि ब्यापत घोर अँधेरा,
गोविन्द नया सबेरा कीजो,
कान्हा सब तम---------------

सब अपने छूटे सपने टूटे,
हरि धाय हाथ धर लीजो,
कान्हा सब तम ---------------

इक आश तुम्ही विश्वाश तुम्ही,
अब नव उमंग भर दीजो,
कान्हा सब तम -------------

बिचलित मन नहि सुमिरै कान्हा,
मोरे मन मंदिर घर कीजो,
कान्हा सब तम ---------------

रचना आभार: ज्योति नारायण पाठक
वाराणसी
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