चली चली रे भवन माँ के चली रे

चली चली रे भवन माँ के चली रे
चली भगतो की टोली लेके खाली ये झोली सारी दुनिया द्वार पे चली रे,
चली चली रे भवन माँ के चली रे

जाके चरणों में शीश जुकाए माँ को लाल चुनरियाँ चदाये
मेरी माँ है निराली चलो चलो रे सवाली कही निकल न जाए घड़ी रे,
चली चली रे भवन माँ के चली रे

उची है शान तुम्हारी उचे महलो में रहने वाली,
तेरी लीला अप्रम पारी नैया पार उतारी सारे जगत की तू रखवाली,
चली चली रे भवन माँ के चली रे

कटरे में तेरा बसेरा जम्मू में तेरा सवेरा,
सारे जग का ठिकाना तेरे दर पे है आना भरनी है खाली झोली रे,
चली चली रे भवन माँ के चली रे
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