राम सुमीर ले भटके मनवा पायेगा आराम

माया के सब बंधन झूठे फिर क्या जगत से काम
राम सुमीर ले भटके मनवा पायेगा आराम

मिटी की तेरी काया बनता क्यों अभीमानी
कल रहे न तू रहे करता क्यों नादानी
ना जाने किस पल हो जाए इस जीवन की शान
राम सुमीर ले भटके मनवा पायेगा आराम

जन्म मरन के फेरे कह्ते है यही कहानी
श्री राम ही धरती गगन है नही तुझ बिन आणि जानी
यही वो अनमोल हीरा ही जिसका प्रगटा न कोई राम
राम सुमीर ले भटके मनवा पायेगा आराम

मन में वसी है जो मूर्त तूने न पहचानी
श्री राम की लीला है न्यारी जग में किसी ने न जानी
अंतर खिल जाए गा तेरा मुख से लेले नाम
राम सुमीर ले भटके मनवा पायेगा आराम
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