अंखियाँ हरि दरसन की प्यासी

अंखियाँ हरि दरसन की प्यासी,

देख्यौ चाहति कमल नैन कौ,
निसि-दिन रहति उदासी

आए ऊधै फिरि गए आँगन,
डारि गए गर फांसी

केसरि तिलक मोतिन की माला,
वृन्दावन के बासी

काहू के मन को कोउ न जानत,
लोगन के मन हांसी

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ,
करवत लैहौं कासी
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