वाह वाह रे मौज फकीरा दी.
कभी तो खांदे चना चबेना,
कभी लपता लेनदे खीर दी,
वाह वाह रे मौज फकीरा दी.
कभी तोह ओढ़े मैली चादर,
कभी शाल पश्मीरा दी,
वाह वाह रे मौज फकीरा दी.
कभी तो रहंदे राज भवन विच,
कभी ते गली अहीरा दी,
वाह वाह रे मौज फकीरा दी.
मांग तांग कर टुकड़े खांदे,
चाल चले अमीरा दी,
वाह वाह रे मौज फकीरा दी.
Aashish Kaushik
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