जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा

जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,
हंजुआ आ नाल भिज गइयाँ अखियां,
अखियां तक तक थकियाँ मैं गली गली लभदी फिरा,
जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,

कैसे पूजी अष्टमी नोमी कुछ भी समज न आये,
दर दर भटक रही हु मैया मेरा दिल ये बैठा जाये,
कही भी दिखती ना ही कंजका दस की करा,
जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,

पापी है वो हत्यारे जो कोख में मार रहे है,
कदम कदम पे बेटियों को क्यों दुद्कार रहे है,
सेहती है ये क्या क्या कंजका दस की करा,
जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,

इसी तरह ये खत्म हुई तो कैसे बेल बड़े गी,
बेटी बहुये माँ भेहने कहो कैसे कहा मिले गी,
कंजका मूक न जाये दातिये दस की करा,
जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,

सास नन्द के ताने हस कर हम सेहती है,
दोनों कुल की लाज रखे हस्ती इनकी ऐसी है,
फिर क्यों मारे इनको दातिये दस की करा,
जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,

कंजका पूजन बिना तेरी सफल न होती पूजा,
नजर नहीं आता है दातिए कुछ रस्ता दस कोई दूजा,
भटको को रस्ता दिखला दे दातिए अर्ज करा,
जग तो मूक चलियाँ कंजका दातिये दस की करा,
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