मन की आखों से मै देखूँ रूप सदा सियाराम का

दोहा : किस काम के यह हीरे मोती, जिस मे ना दिखे मेरे राम |
राम नहीं तो मेरे लिए है व्यर्थ स्वर्ग का धाम ||

मन की आखों से मै देखूँ रूप सदा सियाराम का |
कभी ना सूना ना रहता आसन मेरे मन के धाम का ||

राम चरण की धुल मिले तो तर जाये संसारी |
दो अक्षर के सुमिरन से ही दूर हो विपता सारी ||
धरती अम्बर गुण गाते है मेरे राम के  नाम का ||

हर काया मे राम की छाया, मूरख समझ ना पाया |
मन्दिर, पत्थर मे क्यों ढूंढे, तेरे मन मे समाया ||
जिस मे मेरे राम नहीं है, वो मेरे किस काम का ||

दुखियो का दुःख हरने वाले भक्त की लाज बचाओ |
हंसी उड़ाने वालो को प्रभु चमत्कार दिखलाओ ||
मेरे मन के मन्दिर मे है मेरे प्रभु का धाम |
मेरे अंतर के आसन पर सदा विराजे राम ||
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