जय अम्बे जगदम्बे माता

जग की रचना रचना वाली तेरे हाथ हज़ार,
इस भाव सागर में है तेरे नाम से बेडा पार।
मनमे पाप कपट को लेकर बंद शीश झुकाए,
फिर भी तेरे द्वार से माता खाली कोई ना जाए॥

जय अम्बे जगदम्बे माता, जय अम्बे।
पौना वालिए, ज्योता वालिए, नी मैं आई तेरे द्वारे॥

तेरी मर्जी से चलता है जग संसार यह सारा,
पाप का भागी बनता है फिर क्यूँ इंसान बेचारा।
मूर्ख गायनी और लुटेरे, सब हैं खेल खिलोने तेरे,
किस को छोड़े किस को घेरे तेरे हैं रंग नयारे॥

गूंग रही हूँ दिल के टुकड़े, माथे का सिंधूर,
कौन करे ए माता मेरे कष्ट तेरे बिन दूर।
दुखिओं के वर्लाप भी देखे, धनिओं के परताप भी देखे,
दुनिया के पाप भी देखे, तू मेले बिछड़े सहारे॥

भक्त जानो की बीड़ भी है और फिरते हैं दरबार,
आगे बड़ कर कैसे ले लूँ माता का वरदान।
सब की विपता हरने वाली, सब पर कृपा करने वाली,
सब की झोली भरने वाली, मुझ को भी रास्ता दिखादे॥
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